दिल्ली क्लाउड सीडिंग IIT दिल्ली में IIT कानपुर द्वारा 3.21 करोड़ रुपये की लागत से क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट किया गया, लेकिन बारिश नहीं हुई। असल वजह मौसम की अनुकूलता की कमी और बादलों में नमी का कम होना बताया गया है। इस तकनीक को सफल बनाने के लिए सटीक मौसम की जरूरत होती है, जो इस बार पूरी नहीं हुई।
दिल्ली क्लाउड सीडिंग IIT प्रोजेक्ट का परिचय और खर्च
#दिल्ली सरकार ने IIT कानपुर के सहयोग से प्रदूषण घटाने और कृत्रिम बारिश लाने के उद्देश्य से पहली बार क्लाउड सीडिंग का पायलट प्रोजेक्ट शुरु किया। इस प्रोजेक्ट की कुल लागत लगभग 3.21 करोड़ रुपये है, जिसमें पांच परीक्षण शामिल हैं। इस प्रक्रिया में सिल्वर आयोडाइड नैनोकण, आयोडीन युक्त नमक और रॉक सॉल्ट का उपयोग किया गया, जिसे विमान द्वारा बादलों में छोड़ा गया।
दिल्ली क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट का परिचय

दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए IIT कानपुर द्वारा क्लाउड सीडिंग की योजना और इसका उद्देश्य बताया जाएगा।
वैज्ञानिक प्रयास और तकनीकी प्रक्रिया
यहां क्लाउड सीडिंग में इस्तेमाल की गई तकनीक, सिल्वर आयोडाइड फ्लेयर्स और विमान उड़ाने की प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा होगी।
क्यों नहीं हुई बारिश? असल वजहें
IIT कानपुर के निदेशक मनिंद्र अग्रवाल के हवाले से बताया जाएगा कि बादलों में नमी की कमी (15-20%) और मौसम की अनुकूलता न होने के कारण बारिश नहीं हो पाई।
क्लाउड सीडिंग का प्रदूषण पर प्रभाव
बादलों में कम नमी के बावजूद क्लाउड सीडिंग के बाद दिल्ली में पीएम 2.5 और पीएम 10 प्रदूषण में 6-10% तक कमी दर्ज की गई।
प्रतिक्रिया और आलोचना
इस प्रयास को लेकर जनता और विभिन्न राजनीतिक
पार्टियों की प्रतिक्रियाएं और आलोचनाएं प्रस्तुत की जाएंगी।
आगे की योजना और सुधार के प्रयास
आईआईटी कानपुर की टीम द्वारा भविष्य में बेहतर परिणामों के लिए
किए जाने वाले परीक्षणों और सुधार योजनाओं पर चर्चा।
क्लाउड सीडिंग की सीमाएं और वैज्ञानिक निष्कर्ष
क्लाउड सीडिंग की सीमाओं, इसकी आपातकालीन
भूमिका और वैज्ञानिक निष्कर्षों का विश्लेषण करेगा।






