Mona Agarwal: पेरिस पैरालंपिक में पदक जीतने के बाद भावुक हुईं मोना, बोलीं- बच्चों से दूर रहकर खुद को निखारा
August 31, 2024 2024-08-31 4:52Mona Agarwal: पेरिस पैरालंपिक में पदक जीतने के बाद भावुक हुईं मोना, बोलीं- बच्चों से दूर रहकर खुद को निखारा
Mona Agarwal: पेरिस पैरालंपिक में पदक जीतने के बाद भावुक हुईं मोना, बोलीं- बच्चों से दूर रहकर खुद को निखारा
Introducation : Mona Agarwal
पैरालंपिक 2024 के दूसरे दिन भारत ने कुल चार पदक जीते। इनमें एक स्वर्ण, एक रजत और दो कांस्य शामिल हैं। पैरा शूटर मोना अग्रवाल ने 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच1 स्पर्धा में 228.7 का स्कोर बनाकर तीसरा स्थान हासिल किया और भारत को कांस्य पदक दिलाया।
पेरिस पैरालंपिक में शुक्रवार का दिन पैरा शूटर मोना अग्रवाल के लिए यादगार रहा। उन्होंने 10 मीटर एयर
राइफल स्टैंडिंग एसएच1 स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। इस ऐतिहासिक जीत के बाद उन्होंने अपने संघर्ष
की कहानी सुनाई। मोना ने बताया कि उन्होंने अपने बच्चों से दूर रहकर खुद को निखारा।
दूसरे दिन भारत ने जीते चार पदक
पैरालंपिक 2024 के दूसरे दिन भारत ने कुल चार पदक जीते। इनमें एक स्वर्ण, एक रजत और दो कांस्य शामिल हैं।
पैरा शूटर मोना अग्रवाल ने 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच1 स्पर्धा में 228.7 का स्कोर बनाकर
तीसरा स्थान हासिल किया और भारत को कांस्य पदक दिलाया। पदक जीतने के बाद वह भावुक हो गईं।
बच्चों से दूर रहकर खुद को निखारा
मोना ने बताया कि उनके बच्चे वीडियो कॉल पर मासूमियत से यह समझते थे कि वह घर वापस आने
का रास्ता भूल गई हैं और उन्हें वापस लौटने के लिए जीपीएस की मदद लेनी होगी। 37 वर्षीय पैरा शूटर ने कहा- जब
मैं अभ्यास के लिए जाती थी तो अपने बच्चों को घर पर छोड़ना पड़ता था। इससे मेरा दिल दुखता था। मैं
हर दिन उन्हें वीडियो कॉल करती थी और वे मुझसे कहते थे, ‘मम्मा आप रास्ता भूल गयी हो,
जीपीएस पर लगा के वापस आ जाओ’। मैं अपने बच्चों से बात करते समय हर शाम
रोती थी, फिर मैंने उन्हें सप्ताह में एक बार फोन करना शुरू कर दिया।
आर्थिक संकटों का भी किया सामना
पहली बार पैरालंपिक खेलों में भाग ले रही 37 साल की मोना काफी समय तक स्वर्ण पदक की
दौड़ में बनी हुई थी, लेकिन भारत की अवनि लेखरा ने इस पर कब्जा जमाया। जीतने के बाद मोना ने संघर्ष
के दिनों को याद किया। उन्होंने कहा- वह मेरा सबसे मुश्किल समय में से एक था, वित्तीय संकट एक
और बड़ी समस्या थी। मैंने यहां तक पहुंचने के लिए वित्तीय तौर पर काफी संघर्ष किया है। मैं
आखिरकार सभी संघर्षों और बाधाओं से पार पाकर पदक हासिल करने में सक्षम रही। मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा है।
2010 में छोड़ दिया था घर
पोलियो से पीड़ित मोना ने कहा कि उन्होंने खेल में अपना करियर बनाने के लिए 2010 में घर छोड़ दिया था
लेकिन 2016 तक उन्हें नहीं पता था कि पैरालंपिक जैसी प्रतियोगिताओं में उनके लिए कोई गुंजाइश है।
उन्होंने कहा- मुझे 2016 से पहले पता नहीं था कि हम किसी भी खेल में भाग ले सकते हैं।
जब मुझे अहसास हुआ कि मैं कर सकती हूं, तो मैंने खुद को यह समझने की कोशिश की कि
मैं अपनी दिव्यांगता के साथ खेलों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकती हूं।
मैंने तीन-चार खेलों में हाथ आजमाने के बाद निशानेबाजी को चुना।