क्लाउड सीडिंग हवा रिपोर्ट दिल्ली में 2025 में किए गए क्लाउड सीडिंग के ट्रायल IIT कानपुर की रिपोर्ट के अनुसार बादलों में नमी की कमी के कारण सफल नहीं हो पाए, लेकिन हवा की गुणवत्ता में 6-10% तक मामूली सुधार दर्ज हुआ।
क्लाउड सीडिंग हवा रिपोर्ट हवा की गुणवत्ता में मामूली सुधार के आंकड़े
#क्लाउड सीडिंग हवा रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के 20 चयनित मॉनिटरिंग स्टेशनों से एकत्र किए गए आंकड़ों के मुताबिक हवा की गुणवत्ता में मामूली सुधार दर्ज हुआ है। क्लाउड सीडिंग के बाद PM2.5 और PM10 प्रदूषण मानकों में कमी आई है। उदाहरण के लिए, मयूर विहार, करोल बाग और बुराड़ी जैसे इलाकों में PM2.5 का स्तर 221, 230 और 229 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से घटकर क्रमशः 207, 206 और 203 हो गया। इसी तरह, PM10 का स्तर भी 207, 206 और 209 से घटकर 177, 163 और 177 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रह गया।
क्लाउड सीडिंग का उद्देश्य और परिदृश्य

वायु प्रदूषण को कम करने और शहर की हवा साफ करने के लिए दिल्ली में क्लाउड सीडिंग की शुरुआत की गई थी, जिसमें IIT कानपुर के वैज्ञानिकों ने प्रमुख भूमिका निभाई।
क्लाउड सीडिंग क्यों फेल हुआ?
बादलों में नमी बहुत कम थी, केवल 15-20 प्रतिशत, जबकि सामान्यतः यह प्रक्रिया 60 प्रतिशत से अधिक नमी पर प्रभावी होती है। नमी की कमी के कारण वर्षा नहीं हो सकी, लेकिन वायु गुणवत्ता में 6-10 प्रतिशत की मामूली सुधार दर्ज किया गया।
हवा की गुणवत्ता में मामूली सुधार
क्लाउड सीडिंग के बाद प्रदूषक कण जैसे पीएम 2.5 एवं पीएम 10 के स्तर में स्थिरता आई, जिनमें 6-10 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। दिल्ली के कई इलाकों में इसमें सुधार हुआ, जिससे AQI भी बेहतर हुआ।
वैज्ञानिक रिपोर्ट और निष्कर्ष
आईआईटी कानपुर ने रिपोर्ट में कहा कि प्रयोग सफल था,
क्योंकि इससे प्रदूषण के स्तर में कमी आई है। हालांकि,
बारिश नहीं हुई, लेकिन यह साबित हुआ कि कम नमी वाले
वातावरण में भी तकनीक का सीमा पहचानने में मदद मिली।
आगामी योजनाएँ और परीक्षण
अगले चरण में नमी स्तर 20-25 प्रतिशत होने की उम्मीद है,
जो कि जनवरी-फरवरी में मिलना कठिन है। इस दौरान
नई तकनीकों का प्रयोग कर प्रभावकारिता का परीक्षण किया जाएगा।
सरकार और वैज्ञानिक प्रयास
दिल्ली सरकार और आईआईटी कानपुर मिलकर अगली बार
अधिक प्रभावी ट्रायल के प्रयास कर रहे हैं, ताकि नमी और
मौसम की स्थितियों के अनुसार अधिक अच्छा परिणाम मिल सके।
समीक्षा और आलोचना
कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि तकनीक की सीमाएं हैं और बिना
उचित मौसम के प्रभाव सीमित ही रह सकते हैं; कई आलोचक
इसे केवल पैसे की बर्बादी मानते हैं। लेकिन, वैज्ञानिक मानते हैं
कि यह भविष्य में महत्वपूर्ण उपकरण साबित हो सकता है।






